भारत मे नाट्य विकास

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भारत का नाट्यशास्त्र मारतीय ललित कलाओं का मूत समाना है। हसके आार पर संगीत, काव्य, नृत्य एवं राज्य विषय पर अनेक मात्र अन्यों की रचना हुई है। प्रस्तुत पुस्तक में भी भारत में जादा विकास का आध्ययन नारवशाव सहित जास्वीय समाज, पारम्परिक रगमंच, आधुनिक गम्स एवं काली कला आदि सन में किया गया है।

हिन्दी नाटक और रंगमय के इतिहास के बात पुराना न होकर भी अपनी रचनाशीलता में लोकनाट्परूणों और सस्कृत नाटक को परमारा में अपना रिश्ता बनाया और विकसित किया प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने शास्त्रीय रंगमंच केजच्याय में नाट्यशास्त्र के प्रादुर्भाव व संस्कृत नाटक के विकास और पारपरिक रंगमय के अध्याय में देश के विभिन्न प्रान्तों में व्याप्त लोकनाट्य शैलियों, खेले जाने वाले तोकनाटयों एवं मांगों के सम्बन्ध में संक्षिप्त एवं सार्थक जानकारी दी है |


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ओम जोशी 


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