एक कहावत है कि खजुर के पौधे के पांव पानी में और सिर सुरज में होना चाहिए यानी इस पौधे को धुप प्रचूर मात्रा में मिलनी चाहीए और जड़ों की जमीन भीगी हुई रहनी चाहिए जिससे बहुत अच्छी पैदावार देता है बाड़मेर और जैसलमेर मरुस्थलीय क्षेत्र है और यहां पर धुप साल के तीन सौ दिन रहती है और अब सिंचाई की सुविधा होने के कारण खजुर की बागवानी करना लाभ का सौदा हो गया है।
पश्चिमी राजस्थान में खजूर, खेती की शुरुआत 2009 में हुई थी और उत्पादन 2013 से आना शुरू हुआ, बाड़मरे के 300 हेक्टेयर में खजूर की बागवानी होती है सालाना उत्पादन करीब 800 टन है जिससे किसानों की आय में इजाफा हुआ है। बारिश कम होने से इस क्षेत्र में मेडजूल, खलास और किमिया प्रजाति की खजूर के पींड पौधे पर ही बन जाते हैं जिनकी बाजार में ज्यादा किमत है और भारत मैं इनका उत्पादन सिर्फ बाड़मेर- जैसलमेर में ही होता है।
अन्तराष्ट्रीय बाजार में भी यहां के पिंड खजूर को एक बढ़त हासिल हैं कि यहां की फसल खाड़ी देशों की फसल से एक माह पहले ही पक जाती है बाड़मेर में बरही, खुनेजी, अल- अजवाह, मेडजूल, खलास और कीमिया आदी किस्म की खजूर उगाई जाती है खजुर को पूर्ण पोष्टिक फल भी कहा जाता है इसमें 70 % कार्बोहाइड्रेट, विटामिन A, B-2, B-7, पोटेशियम, कैल्शियम, मॅग्नीज, क्लोरिन, फॉस्फोरस सल्फर और आयरन होता है इसमें एक किलो में 3000 कैलोरी होती हैं
भारत विश्व का सबसे बड़ा पिंड खजूर का आयातक देश है पूरे विश्व की 38% खजुर भारत आयात करता है जिससे हमारे विदेशी मुद्रा भंडार पर भी दबाव पड़ता है गुजरात भारत में सबसे ज्यादा खजुर उत्पादन करता है लेकिन वहां खजुर की जो किस्म उगाई जाती है उसका पिण्ड नहीं बनता - इसलिए उसे दूसरे फलों की तरह तुरंत उपयोग करना पड़ता है बाड़मेर जैसलमेर ही भारत में ऐसे इलाके हे जहाँ खजूर के पिंड बनने वाली किस्में उगाई जा सकती है और किसान सम्पन हो सकते है।
विश्व में खजूर का बाजार 110,000 करोड़ है जिसमे भारत में मुश्किल से 200 से 300 करोड़ का उत्पादन होता है हमें हमारी जरूरत का बाहर से आयात करना पड़ता है और यहाँ जो भी उत्पादन होता है उसे बेचने का सही प्लेटफार्म नहीं होने के कारन हर उत्पादक अपने निजी प्रयासों से ही अपनी फसल बेचता है उत्पादन बढ़ाना और उत्पादित होने फसल को सही बाजार उपलब्ध करवाना हमारा लक्ष्य है।
Nehpal Rathore