हाबूर का पत्थर

हाबूर का पत्थर

BARMER

 



                                     जैसलमेर शहर के उत्तर पश्चिम में 40 किलो मीटर की दूरी पर स्थित हाबुर नाम के गांव में पाया जाने वाला जीवाश्म पत्थर ही हाबूर का पत्थर है भूगर्भशास्त्री इस पत्थर  की रचना 12 करोड़ साल से लेकर 10 करोड़ साल पहले होना बताते इस पुत्पर का रंग गहरे भूरे या कॉफी के रंग जैसा होता है इस पत्थर के अन्दर जो आकृतियाँ है वह समुन्द्री सेवाल और छोटे समुन्द्री जीवों के जिवाश्म ही हैं  पश्चिमी राजस्थान में हाकडो नाम से जिसे टेथिस  सागर भी कहते हैं एक समुन्द्र हुआ करता था जिसके सूख जाने से यह पत्थर सतह पर आये है।

   

                                                           इस पत्थर के बारे में बहुत सारी मान्यताऐं है कि इसमें दूध गर्म करके रखने पर 12 से 14 घंटे में दही बनता है यह दावा काफी हद तक सही भी पाया जाता है हाबुर के पत्थर में शुक्ष्म रंध्र होते जिसमें दही कोई खट्टापन रह जाता है और दुबारा इसके किसी पत्थर के बर्तन को उपयोग करने पर दूध दही में  परवर्तित हो जाता है  यह दावा वैज्ञानिक रूप से कहीं साबित नहीं है परन्तु स्थानिय लोगों और ग्राहकों द्वारा प्रयोग करने पर 60 से  70% सही निकला है कहीं-कहीं यह भी कहा जाता है कि इसके किसी भी बर्तन में खाने पीने से उच्च रक्तचाप और जोड़ों का दर्द खत्म हो जाता है इस पर भी अभी कोई  रिसर्च नहीं हुई है यह भी एक मान्यता ही है।

                                                    उपरोक्त सब मान्यताओं के पूर्ण रूप से सही नहीं होने के बावजूद भी वह इस पत्थर से बने हुए सामान गहरे लाल भुरे रंग लिए होने के कारण बहुत ही आकर्षक लगते हैऔर इसके ऊपर बनी हुई जीवाश्म की आकृतियां बहुत ही आकर्षक होती है जिससे सभी के मन से इस पत्थर का कोई भी एक बर्तन उपयोग में लेने या घर में सजावट के लिए रखने की आकांक्षा होती है इस पत्थर की टाईल्स जैसलमेर के  जैन मन्दिरों में और अकबर बादशाह के फतेहपुर सिटी के महलों में लगी है हाबुर के पत्थर के  बर्तन बहुत ही सुन्दर दिखते है


Nehpal Rathore

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