राजस्थान का पश्चिमी हिस्सा थार मरुस्थल जो अपनी पोष्टिक घास के लिए विश्व प्रसिद्ध है यहाँ उगने वाली सेवण घास को किंग ग्रास भी कहते है उसके साथ उगने वाली भूरट, मुरठ, बेकर, कांटी, धामण, ग्रामणो, मींजल, चंदलो, लम्प, बुर, डाबी, दूधेली, गुंदी, गुग्गल, गंगण, लाई, लंप, बाजर वेल, खड़ काचर आदी घासे इस मरूस्थल को पशुपालकों के लिए बेहतरीन स्थान बनाते है ।
इसी मरुस्थल के बाड़मेर-जैसलमेर हिस्से में गायों की तीन नस्ले पायी जाती है कांकरेच, थारपारकर और सिंधी इन नस्लो का दूध उच्च कोटी का व पोष्टिक होता है इन्हीं गायों के दूध से पारम्परीक बिलोना विधि से बना घी ही शुद्ध देशी 'घी' होता है इस विधि को वैदिक विधि भी कहते हैं जिसमें दूध को गर्म करके जमाया जाता है और मिट्टी के बर्तन में हाथ से बिलोना किया जाता उससे मख्खन बनता है और मख्खन को हल्की आँच पर गर्म करके घी निकाला जाता है जो रंग में हल्दी के जैसा व दानेदार व सुगंधित होता है।मरुस्थळ में खुले में चराई करने वाली उच्च कोटी की गायें चालिस से पचास तरीके की पोष्टिक घास खाकर कई गुणों से भरपुर A2 विटामिन से युक्त दुध प्रदान करती है इस घी में ट्रांसफेट जीरो होता है जिसके चलते कैंसर पैसेंट भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं
गाय के घी में विटामीन A, कैल्शियम, ओमेगा-6 और 9 विटामीन, मेग्नेशियम, बटरीक ऐसिड और बेटा केरोटिन पाये जाते हैं जो शरीर के लिए अत्यधिक लाभकारी होते है यह घी एंटी-ऑक्सीडेन्ट से भरपूर, ग्लूटेन मुक्त और इसमें एंटी बेक्टरिअल और एन्टी -वायरल गुण है जो व्यक्ति को बिमारी से उबरने में मदद करते हैं यह हार्ट के लिए अच्छा, त्वचा को पोषण देने वाला और सैंस औगर्न को मजबूत करने वाला घी है।यहाँ का घी पूरी तरह से प्राकृतिक कहा जा सकता है क्योंकि गाये खुले में चरती हैं और कई तरह का सुखा-हरा घास खाती है डेयरी में पाली हुई गाय लगभग एक तरह का हरा चारा और उपर से दिये गये कई आहार खाती है थार मरुस्थल में भादवे के महिने के घी को सबसे पोष्टिक और स्वादिष्ट माना जाता है।
घी को पौराणीक समय से ही सात्विक भोजन माना गया है आर्युवेद के सिद्धान्त के अनुसार गाय को गौशाला में नहीं रखना चाहिए बल्कि खुले में चराना चाहिए, बिलोना घी शरीर मे वात, पीत और कफ दोष को दूर करने में सहायक होता है। यह दृष्टि दोष को भी कम करने में मदद करता है।
Nehpal Rathore
Barmer