मुल्तानी_मिट्टी{मेट) Multani Mitti

मुल्तानी_मिट्टी{मेट) Multani Mitti

थार का सौंदर्य प्रसाधन

 मुल्तानी मिट्टी (मेट)

माथो धोयो मेट सूं और चोपड़यो चमेली रो तेल

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मरूधरा की मूमलों के सौदर्य  और रूप को निखारने का सौदर्यप्रसाधन या रूपनिखार का साधन है--

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 बाड़मेर की मुल्तानी मिट्टी...

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आज से कुछ सालों पहले जब गांवों में साबुन तथा सौदर्य प्रसाधन इतने लोकप्रिय भी नहीं थे तथा गांवों तक उनकी पहुंच भी सुनिश्चित नहीं हुई थी,तब तक मरूधरा की मरवणें तथा माड़ की माड़ेचियां अपने रूप निखार के लिए सौदर्य प्रसाधन के रूप में बाड़मेर जिले में भाड़खा तथा आसपास के गांवों में उपलब्ध स्थानीय मिट्टी जिसे आम बोलचाल की बोली में मेट कहते थे तथा इसे मुल्तानी मिट्टी भी कह सकते हैं, को उपयोग में लेती थी।

गांव की सभी छोटी मोटी दुकानों तथा घुम्मकड़ी करने वाले बणजारों तथा उनकी औरतें के पास ये मुल्तानी मिट्टी उपलब्ध हो जाती थी... 


ये घुम्मकड़ी महिलाएं घरों में जाकर मां बहनों को मुल्तानी मिट्टी के बड़े बड़े टुकड़ों को बेचकर बदले में अनाज या कपड़े प्राप्त करती हैं... यह पूरी तरह से प्राचीन बार्टर सिस्टम था..चीज के बदले चीजें।इस मुल्तानी मिट्टी की कोई खास कीमत भी नहीं थी...यह हर घर में सहजता से उपलब्ध थी।


कुछ महिलाएं इसे खाती हुई भी देखी जाती थी ।ऐसी मान्यता है..हालांकि मैं पुष्टि नहीं करता हूँ कि... क्यों खाती थी...लेकिन मानते हैं कि फीक उठने के कारण स्वाद बदलने के लिए महिलाएं इसे खाती थी... तथा उनके होठों पर मटियाला कठाई से इसकी पुष्टि होती थी।


इस मुल्तानी मिट्टी की तासीर ठंडी है तो चेहरे पर गर्मी के कारण बनने वाले वणस्फोट या फुंसियां में यह हिकमत मानी गई है... इसके अलावा इसका पेस्ट लगाने से तैलीय त्वचा में सुखापन लाकर निखार आता था... इसके पीत हल्दी जैसे रंग के कारण चेहरे की श्याम रंगत भी पीतवर्णा हो जाती थी... 


इस तरह ये मुल्तानी मिट्टी ही महिलाओं और पुरूषों के लिए थार मरुस्थल में उपलब्ध एक मात्र प्राकृतिक सौदर्य प्रसाधन थी...


लोकगीतों में भी इसके महत्व का वरणाव मिलता है... जब किसी नवयौवना का विवाह तय हो जाता था तो उसके सर में चमेली का सुगंधित तेल लगाने से पूर्व उसका माथा मेट से धोने का स्थानीय लोकगीतों में वर्णन है...थार की महिलाओं साबुन के अभाव में स्थानीय मुल्तानी मिट्टी से ही अपना सर प्रक्षालन करती थी... 

इस मेट के बहुत से किस्से है।

बचपन में जब हम छोटे थे,और जब कभी लू लगती थी तो मां इस मुल्तानी मिट्टी का संपूर्ण शरीर पर लेपन करती थी तथा हमारे तन और केशों का प्रक्षालन भी बहुधा इस मेट से ही होता था।


यह सुदूर देशों में बणजारों के व्यापार की महत्वपूर्ण वस्तु रही है

जोगी नाथ समुदाय इस मिट्टी के रमकड़े बनाकर पकाकर बेचकर जीविकोपार्जन करता था...


कुल मिलाकर थार की इस मिट्टी की महक जब से लेकर आज तक बरकरार है...लेकिन आधुनिक सुलभता से उपलब्ध मंहगे तथा चेहरा बिगाड़ू सौदर्य प्रसाधनों की आवक ने इसको महत्वहीन किया है ।


अब विज्ञापनों की अंधी प्रतिस्पर्धा ने भी मेट की महता को कम किया है, लेकिन मुल्तानी मिट्टी से जो रंगत और निखार आता था, वो इन कैमिकल युक्त सौदर्य प्रसाधनो में कहाँ है....इस मुल्तानी मिट्टी का कोई खास साईड इफेक्ट भी नहीं है।

इस मुल्तानी मिट्टी को कूटकर इसमें कागज की लुगदी मिलाकर हल्के हल्के बरतन #ढाबले बनाये जाते हैं,जो कि एंट्री बैक्टीरियल होते हैं।

अब वक्त आ गया है कि बाडमेर की मुल्तानी मिट्टी की महक और लाभदायकता को पुन;प्रचारित किया जाएं...

क्योंकि यह थार की मिट्टी ही है जो सौ रोग मेटती है..

यह थार की मिट्टी की खासियत है कि सौंदर्य निखार देती है...

यह थार की मिट्टी की सोहबत है कि तन को और मन को ठंडक देती है।

तो क्यों नहीं करे अपने वतन की मिट्टी की महक की मार्केटिंग?

करेंगे ही, करनी ही है,क्योंकि इस मिट्टी का हम पर कर्ज जो है....

इसके सौंदर्य और रूपनिखार वाले महत्व की मार्केटिंग हमारा फर्ज जो है...मैं मिट्टी से जुड़ा हूँ, इसकी मिट्टी की बात करता हूँ, मिट्टी की महक लिखता हूँ।

चंदन है इस देश की माटी....

नरपतसिंह हरसाणी