Description
वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति के अत्यधिक प्रभाव के कारण विवाह समारोह, अन्य पारम्परिक आयोजनों के पारम्परिक लोक गीत तुप्त प्रायः से हो गये हैं। पश्चिमी संस्कृति के कारण इन विवाह गीतों का स्थान फिल्मी गीतों ने ले लिया है जिससे आज की युवा पीढ़ी इन पारम्परिक लोक गीतों से दूर हो गई है। विवाह समारोह व अन्य धार्मिक आयोजन तथा पारम्परिक आयोजनों में गीत गाने वालो गीतेरणियों के स्थान पर टेप, सौ. डी. य म्यूजिक प्लेयर के माध्यम से तेज आवाज में गीतों को बजाया जाता है जिससे न तो इन गीतों की सार्थकता सिद्ध होती है ना ही शब्द इत्यादि समझ में हो आते हैं।
जोधपुर राजपरिवार में पारम्परिक विवाह गीतों व अन्य धार्मिक आयोजनों जैसे रातीजोगा इत्यादि में पाम्परिक गीत गाने वाली गीतेरणियों को जाता है और परम्परानुसार गीत इत्यादि उनके द्वारा गाये जाते हैं। शुक्ल पक्ष की सप्तमी को कुलदेवी की पूजा-अर्चना करने की परम्परा लगभग सभी जातियों में रही है। इस दिन मन्नत पूर्ण होने अथवा मन्नत की पूर्ति के लिये भी कुलदेवी की आराधना की जाती रही है। इसके अतिरिक्त भाद्रपद एवं माघ का शुक्ल पक्ष देवी की आराधना का विशेष पक्ष और बड़ा महोना माना जाता है और इस पक्ष में रातिजोगा दिलवाने की विशेष परम्परा रही है। यह पक्ष निःसन्देह लोक आस्था में दृढ़ता लाता है।
हाल ही में मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित माँ नागणेचिया माताजी के मंदिर में दिनांक 13 सितम्बर 2013 से 17 सितम्बर 2013 माँ के रातीजोगा करवाया गया जिसमें गोतेरणियों द्वारा पारम्परिक रूप से गीत गाये गये वर्तमान में उक्त सभी गीतेरणियां अत्यधिक वृद्धावस्था में है और बड़े ही दुख की बात है कि इनकी भावी पीढ़ी और बहुएं इन पारम्परिक गीतों को गाने में रुचि नहीं ले रही है जिससे आने वाले समय मे ये गीत लुप्त प्रायः से हो जायगे।
भविष्य की आवश्यकता ओर इन लुप्त होते पारम्परिक गीतों की उपयोगिता को देखते हुए इन गीतों को एक किताब के रूप लिखवाने का कार्य किया जा रहा है
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ठाकर डॉ महेंद्रसिंह नगर री इण मेहताऊ मैणत बाबत् घणौ घणौसाधुवाद है। म्हारौ विसवास है के, पाठक गण इण किताब नेघणा चाव सू पढसी।
Product Information | ||||
21.5 x 13.5 x 0.5 cm | ||||
Publisher : maharaja mansingh pustak prkash reacher center | ||||