Description
कर्म की गति बड़ी गहन होती है और इस गहन कर्मगति से कोई बच नहीं सकता है। क् जो ताज पहनाता है और कर्म ही कटघरे में खड़ा कर देता है। भगवान महावीर ने कहा- मनुष्य जम से नहीं कर्म में महान बनता है। कर्म से तात्पर्य पुरूषार्य के परिणाम से परिणाम अच्छा या बुग कोई भी हो सकता है और उसी के अनुसार (अच्छा यानी शुभ कर्म एवं बुरा यानी अशुभ कम) कर्म জনম होता है। बेटा में कहा गया है कि मनुष्य और देवता सभी अपने-अपने अमों की गति से ही संचालित होने हैं। कर्म करने वालों को प्रवज्ञानियों में भी उच्च श्रेणी का बताया गया है। स्वर्ग और नर्क की कल्पना भी इनकों के पल के आधार पर ही को गई है। गीता में कहा गया है कि कर्म, अकर्म और विकर्म की विवेचना आवश्यक है और उपनिषद कहते है कि कर्म और ज्ञान के संयोग में ही जीवन उत्कर्ष को प्राप्त होता है गोता में चाही गई कर्म के विविध रूपों की विवेचना ज्ञान के विना संभव नहीं है। अहंकार और अभिलाषा का त्याग कामे के बाद पुद्धि और विवेक को अपनाकर जो कर्म किया जाता है, उसी से व्यक्ति को जीवन में वास्तविक सुख मिलता है।
Product Information | |
Dimensions : 21.4 x 13.8 x 0.5 cm | |
Publisher : pritam jain 2016 | |