Description
उपभोक्तावाद के इस दौर में बंशीधर तातेड़ को लोगों की भीड़ में इंसान ढूंढना पड़ रहा है। दुनिया में ईमान ढूंढना पड़ रहा है । माना कि आदमी खुदगर्ज हो रहा है, खून के रिश्ते भी रिश्ते सरीखे नहीं रहे। माना कि लेखक ऐसे हुक्काम खोजना चाहता है जो दुखियों के दुःख दूर करें। माना कि बापू के सत्य-अहिंसा कहीं दूर छूटते जा रहे है, पर इससे क्या जब तक जीवन है तब तक मनुष्य सुन्दर जीवन की कामना करता है। इंसान कभी भी आशा का दामन नहीं छोड़ता है। बुरी से बुरी परिस्थति में भी वह उम्मीद की लौ जलाए रखना चाहता है। तभी लेखक कहता है कि हौंसले से जो चला मंजिल पे होता है और यह भी माना कि ऊँचा है अम्बर, खोलें पंख उड़ान भरें। इस तरह की आशावादी पंक्तियाँ भरी पड़ी है पुस्तक में, जो हमें निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है और आज की यही जरूरत है। लेखक जीवन की सच्चाईयों को सूत्र वाक्यों में लिखता है जैसे कि भाग्य से ज्यादा मेहनत और पुरुषार्थ पर भरोसा करना चाहिए। हीरे मोती किनारे पर बैठने वाले को नहीं मिलते है वे तो उन्हें मिलते हैं जो समंदर में गहरे उतरते है। आगे तातेड़ जी सीख देते है कि कभी माँ का दूध मत लजाइए, लाचार का दिल मत दुखाइए, किसी के छालों पर नमक न छिड़किए. किसी गरीब का घर न जलाइए आदि।
Product Information
Dimensions : 22 x 14 x 1.5 cm | |
Language : Hindi |