राजस्थान की रजत बूंदे

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Description

रेगिस्तान को सूखा और अकाल क्षेत्र के रूप में सभी जानते है। पानी की कमी, कम पैदावार, विकास के लिहाज से पिछड़े लोग एवं पिछड़ा इलाका। दुनिया के रेगिस्तानी इलाके की तस्वीर कमोबेश ऐसी ही हमारे सामने आती है। सदियों पुराने रेगिस्तान ने अपने जीवन में हरापन बनाए रखने के लिए प्रकृति के अनुरूप वे समस्त व्यवस्थाएं ईजाद कर रखी थीं जो पिछड़ेपन को झुठलाती है। खान-पान और पहनावे से लेकर रेगिस्तान की अनेक परम्पराएं सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक रही हैं। अनुभवों ने ज्ञान विज्ञान को जन्म दिया और विपरीत परिस्थितियों में भी अनुकूलता तलाश की, लेकिन आज लोक ज्ञान विज्ञान की उपेक्षा के चलते रेगिस्तान में सूखा ज्यादा चुनौतीपूर्ण बन गया है ।

ये प्रश्न जेहन में उठते हैं कि रेगिस्तान में लोग कैसे रहते रहे हैं ? पानी की समस्या कैसे दूर करते थे ? खेती कैसे करते थे? अनाज कैसे उगाते थे? भण्डारण कैसे होता था? मवेशी कैसे रखते थे? नस्ल सुधार कैसे होता था? चारा-घास की व्यवस्था कैसे होती थी? साग-सब्जी की व्यवस्था कहां से करते थे? रेगिस्तान में जीवनयापन कैसे करते थे? दवाई की व्यवस्था कैसे होती थी? घर कैसे बनाते थे? सूखे इलाके में सरसता कैसे लाते थे? मौसम की जानकारी कैसे मिलती थी? ये प्रश्न रेगिस्तान को, यहां के लोगों की बुद्धिमत्ता एवं विज्ञान को समझने के लिए रास्ता दिखाते हैं। यह भी रास्ता दिखाते हैं कि लोक विज्ञान का उपयोग सूखा पूर्व तैयारी में सरकार, जन संगठन, समुदाय सभी कैसे कर सकते हैं।

यह पुस्तक रेगिस्तान के लोक विज्ञान का दस्तावेजीकरण करने का एक छोटा सा प्रयाश है। 

Product Information
Dimensions : 28.5 x 22 x 1 Cm
Writer Bhuvnesh Jain
Publisher : Sure 2007
   
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