पसरती ठण्ड

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Description

सुदूर तक फैला मरुस्थल, जहाँ तक नज़र जाए धवल धोरे-ही-धोरे, दूर तक कोई रुख (वृक्ष) नहीं। शीत ऋतु में ठण्ड से हड्डियाँ काँप जाएँ, ग्रीष्म ऋतु में लू से खुले में खड़ा मुर्गा तंदूरी चिकन बन जाए। वहाँ कठिनाइयाँ, अभाव और निर्धनता थे पर अपनापन प्रेम और संतुष्टि थी, जो जीवन को आनन्द से भर देते। दूसरी तरफ़ पॉश कॉलोनी में रहने वाले लोग जिनके घर सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त, हवाई जहाज, पंचसितारा होटलें, महँगी शराब और लक्ज़री गाड़ियाँ सहज उपलब्ध, उन्हें निकट से देखने का अवसर मिला, जहाँ संपन्नता और असीमित सुख के साधन है फिर भी असंतुष्टि, द्वेष, ईर्ष्या और प्रतिद्वंदिता। जहाँ हम नहीं पहुँचे, जो हमारे लिए रहस्यमय है, वह हमें लुभाता है। हमें लगता है जहाँ अभाव है, वे दुखी है जहाँ भरपूर साधन है, वे सुखी है परंतु ऐसा है नहीं। सुख प्रेम, समर्पण, त्याग, समझ से अनुभूत होता है, साधनों से नहीं। इंसान सुख के लिए इतने असीमित साधन जोड़ता है कि जीवन का लक्ष्य ही पैसा हो जाता है, सारी ऊर्जा उसमें लगाकर अंत में छला हुआ महसूस करता है। मेरी कहानियाँ इसी के इर्द-गिर्द घूमती है।

About the Author

भारत पाक सीमा पर छोटे से गाँव ताणु में जन्म। पिताजी न सिर्फ़ सज्जन और समर्थ बल्कि गाँव में सभी के सुख-दुःख में सबसे आगे खड़े मिलते थे, अतः सबका लाडला, एक कंधे से दूसरे कंधे पर परन्तु भाग्य को ईर्ष्या हुई और पाँच वर्ष की आयु में पिताजी को छीन लिया। तब जाना 180 डिग्री घूमना क्या होता है, कल तक जिनके कंधे पर घूमता आज आवाज़ देने पर मुड़कर भी नहीं देखते। स्कूली पढ़ाई गाँव में फिर एम.बी.बी.एस., एम.डी., कैरियर असिस्टेंट प्रोफेसर एनेस्थेसिया से प्रारम्भ, वर्तमान में प्रोफेसर। वक़्त के साथ लोगों को 360 डिग्री की यात्रा कर पुनः उस बिन्दु पर पहुँचते देखा तो समझ आया पृथ्वी गोल है। इन टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से महसूस किया कि सिखाती तो ज़िन्दगी है, शिक्षा, भाषा या लिपि तो बस उसे प्रकट करने का माध्यम भर बनती है। लेखन विद्यार्थी जीवन से प्रारम्भ, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्र, पत्रिकाओं में कहानी, आलेख और कविताएँ प्रकाशित।

Product information
Item Weight 140 g
ISBN-10 9384419966
ISBN-13 978-9384419967
Dimensions 20.3 x 12.7 x 0.7 cm 
Publisher Hind Yugm Blue; First edition (7 January 2018)
Language: Hindi
       
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