उमादे
हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं जहाँ स्त्री और पुरुष एक दूसरे के बिना अपने एकाकी जीवन को पूर्ण बताने का प्रयास कर रहे हैं, परन्तु सच तो यह है कि वे कितना ही हँसें, मुस्कुराएँ, प्रकट तौर पर खुश दिखने की कोशिश करें पर भीतर ही भीतर एक सूनापन, एक दाह, एक अतृप्ति का भाव सालता ही रहेगा। वे मिलकर ही पूर्ण हो सकते हैं। वह भी दो तन एक मन होने पर।
लोक, उनकी परम्पराएँ उनका व्यवहार, उनका आचार-विचार, सब कुछ समय के साथ बदल जाता है परन्तु सदियों से न तो मानव मन बदला, न ही उसकी पीड़ा, उसका संताप। मैंने सोलहवीं सदी की इस कथा के माध्यम से उसी पूर्णता के अभाव में अनेक स्त्री शरीरों और राज्य की सम्पन्नता को भोगते हुए भी अतृप्त रह जाने के भाव को उकेरने का प्रयास किया है।
About the Author
1 जून 1968 को जन्म ।
सम्प्रतिः सीनियर प्रोफेसर एनेस्थेसियोलोजी एंड क्रिटिकल केयर, डॉ. एस. एन. मेडिकल कॉलेज, जोधपुर।
कहानी संग्रह 'पसरती ठण्ड' और किस्सागोई 'कोटड़ी वाला धोरा' ।
मेरे लेखन से किसी की आँख भर आए, किसी के अधरों पर स्मित फ़ैल जाए तो लगता है दुनिया की सारी खुशी मुझे मिल गई। लेखन से प्रसिद्धि पैसा और पद की इच्छा कभी न रही। ऐसा नहीं है कि मैं कोई असाधारण व्यक्ति हूँ जिसकी सारी इच्छाएँ मर गई हों परन्तु प्रसिद्धि जैसी अस्थायी वस्तु के लिए इतना परिश्रम करना, इतनी चिन्ता करना, शतरंज की चालें चलना मुझे नहीं भाता।
संपर्क
ई-मेल: fatehbhati68@gmail.com
https://www.facebook.com/fateh.bhati.71
Product information | |||
Item Weight | 200 g | ||
ISBN- | 978-93-90659-84-5 | ||
Dimensions | 22 x 14 x 1.5 cm | ||
Publisher | भारतीय ज्ञानपीठ | ||
Language: | Hindi | ||