पश्चिमी राजस्थान में खजूर, खेती की शुरुआत 2009 में हुई थी और उत्पादन 2013 से आना शुरू हुआ, बाड़मरे के 300 हेक्टेयर में खजूर की बागवानी होती है सालाना उत्पादन करीब 800 टन है जिससे किसानों की आय में इजाफा हुआ है। बारिश कम होने से इस क्षेत्र में मेडजूल, खलास और किमिया प्रजाति की खजूर के पींड पौधे पर ही बन जाते हैं जिनकी बाजार में ज्यादा किमत है और भारत मैं इनका उत्पादन सिर्फ बाड़मेर- जैसलमेर में ही होता है।
View Moreराजस्थान का पश्चिमी हिस्सा थार मरुस्थल जो अपनी पोष्टिक घास के लिए विश्व प्रसिद्ध है यहाँ उगने वाली सेवण घास को किंग ग्रास भी कहते है उसके साथ उगने वाली भूरट, मुरठ, बेकर, कांटी, धामण, ग्रामणो, मींजल, चंदलो, लम्प, बुर, डाबी, दूधेली, गुंदी, गुग्गल, गंगण, लाई, लंप, बाजर वेल, खड़ काचर आदी घासे इस मरूस्थल को पशुपालकों के लिए बेहतरीन स्थान बनाते है ।
View Moreजीरा मुख्यतः मिश्र, भारत, चीन और भूमध्यसागरीय देशों का पौधा है लेकिन जीरे का 70% उत्पादन भारत में ही होता है और भारत में भी सिर्फ दो राज्यों के कुछ जिलों में ही इसका उत्पादन होता है हजारों सालों से जीरा भोजन का मुख्य घटक रहा है, यह स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी है यह पेट और आँतों व सम्पूर्ण पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है जिससे कब्जी से राहत मिलती है जीरे में मोजुद लोह तत्व शरीर में लौह तत्व की पूर्ति करता है और कैल्शियम की मात्रा होने के कारण यह हमारी हड्डियों को मजबुती देता है एंटीऑक्सिडेंट होने से यह त्वचा को स्वस्थ रखता है और ताज़गी देता है जीरा खाने से शरीर का डिटॉक्सीफिकेशन होता है कैलोरी कम होने के कारण वज़न भी स्थिर रखता है
View Moreभारत के पश्चिम में बसे राजस्थान का जिक्र थार मरुस्थल के बिना अधूरा है और मरुस्थल ऊँट के बिना अधूरा। ऊँट जिसे पहचाना ही रेगिस्तान के जहाज के रुप में जाता है, थार मरुस्थल में जहाज से भी कहीं ज्यादा अनमोल है। विभिन्न सुनहरे रँगों से दमकती राजस्थान की जिस सँस्कृति को आज हम देखते हैं उसकी नींव ऊँटों की पीठ पर ही टिकी हुई है। हजारों वर्ष पहले संस्कृत भाषा ने ऊँट को अनेक पर्यायवाची दिये थे, जिनमें एक नाम "मय" भी है, इसी से "माया" भी निकली। महाभारत में "मय" नाम का राक्षस, पांडवों के लिये इंद्रप्रस्थ का निर्माण करता है, जहाँ "मय" की शक्तियाँ "मायाजाल" का अनुपम उपयोग करती हैं, जिनके भ्रम में अच्छे-अच्छे "मायावी" भी उलझ जाते हैं।
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