Description
रेतीले सागर से आच्छादित मालाणी परगने में चौधरी रामदान ने किसान जागृति शिक्षा के प्रचार-प्रसार, छात्रावासों की स्थापना, नशा-निवारण, सामाजिक कुरीतियों के दमन, जागीरदारों का विरोध, अन्याय-शोषण से पीडित निरीह अशिक्षित किसान जाट को सम्बलन, सहयोग और मार्गदर्शन इत्यादि पूर्ण तन्मयता से किया।
बाड़मेर के जाटों के साथ सबसे बड़ा अन्याय जागीरदार करते थे, उनके पास सत्ता तक पहुँच थी, पुलिस में अधिकांशतया उन्हीं के ही गुर्गे हुआ करते थे। अग्रेज लोग परत्रता के समय उन्हें ही ज्यादा तब्बजों देते थे। परिस्थितियां अत्यन्त विषम-विकट थी। अशिक्षित जाट समाज पशुपालन का कार्य, पानी का अभाव, चिकित्सा व्यवस्था से दूर, अधविश्वास से ग्रसित एकता की कमी, कुरीतियों से जकड़ा हुआ आधारभूत सरचनाओं से महरूम था ऐसी परिस्थितियों में सर छोटूराम के पुष्कर प्रवास के समय दिए गए उदबोधन -ए भोले जाट तू मेरी दो बात मान । बोलना सीख ओर दुश्मन को पहचान से प्रेरणा लेकर व चौधरी बलदेवराम मिर्धा के सहयोग से अधिकाधिक जाट नौजवानों को रेलवे व सेना में भर्ती करने की मुहिम चलाकर शिक्षा की अलख जगाते हुए बाड़मेर में अपनी धर्मपत्नी के अविस्मरणीय सहयोग से घर में ही जाट के बेटों को रखकर पढ़ाना आरम्भ किया। सन् 1934 में विधिवत रूप से जाट बोर्डिंग की स्थापना कर रामदान जी ने अमर कार्य किया, जिसका फल आज जाट कृषक वर्ग बखूबी उठाता हुआ विश्व के कौने-कौने में अपनी बुलन्दियों का परचम लहरा रहा है।