मार्क्स में मनु ढूढ़ती

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Description

ऐसे समय में जब चीजें ही नहीं हमारा समय ही बेमकसद और गड्डमगड्ड हो तब एक संवेदनशील रचनाकार उससे कैसे निर्लिप्त रह सकता है। माधव ने इन सबको अपनी कहानियों में अभिव्यक्त किया है। ये उस भविष्य की ओर भी संकेत करती हैं जो निश्चित रूप से भयावह है। 'तयशुदा दूरियों के साथ जीना' में लेखक की टीस है-''मुझे समझ नहीं आ रहा था कि सामूहिकता में कितना व्यक्तिगत बचता है और व्यक्तिगत में कितना सामूहिक हो पाता है या फिर ताउम्र दोनों को साथ लिए तयशुदा दूरियों के साथ सफल और सार्थक जीवन जिया भी जा सकता है?'' माधव की कहानियाँ पाठक के भीतर इस तरह से प्रवेश करती हैं कि वह आश्चर्यचकित रह जाता है कि जीवन को इस तरह से भी देखा जा सकता है। इनकी आवाज सीमित नहीं बल्कि व्यापक है जो हर वर्ग, हर चरित्र को उसी की भाषा में अभिव्यक्त करती है।

About Author 

माधव राठौड़ नई सदी में सामने आई हिन्दी कविता की उस पीढ़ी से वास्ता रखते हैं, जो अपने आसपास घटित हो रहे समय के सच को बेबाकी और पूरी ईमानदारी के साथ कविता में दर्ज करती हुई नजर आती है।

1985 में बाड़मेर में जन्में माधव साहित्य की विभिन्न विधाओं पर काम कर रहे हैं।

जोधपुर में रहकर नौकरी के साथ-साथ महानगरीय भागदौड़ के बीच अपनी संवेदशीलता को बचाते हुए अपने इर्दगिर्द फैले संसार को पढ़ते हुए 'इसी दुनिया में रहने लायक' कविताएँ लिख रहे हैं।

Product information
Paperback 160 pages
Dimensions 20.96 x 13.97 x 1.02 cm
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