एक भिखारी की आत्म कथा

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एक भिखारी की आत्मकथा' बहुआयामी, संघर्षों के धनी जीवन का लेखा जोखा है। एक ऐसे अदभुत व्यक्तित्व की कथा है, भिखारी जिसका मात्र नाम है, गुण नहीं। जिसे किसी भी भौतिक पदार्थ की भीख की आकांक्षा नहीं है। जो अपना जीवन देकर सबके जीवन खरीदता है। जो पुर्ण गौरव के साथ आश्वस्त होकर जीवन तथा विश्वास प्राप्त करने का आकाक्षी है। जो अपने कर्तव्य को ही जीवन की सार्थकता और गहन उत्तरदायित्व समझता है। जो पूर्ण रूप से तथा सदैव के लिए अपने आपको अपने लक्ष्य से बाँध लेता है। जो समाज में अनुशासन की भावना को जागृत करने के लिए स्वयं आत्मानुशासन में बंध जाता है। जो मानता है कि कर्म ही जीवन है और अकर्मण्यता ही मृत्यु । उथल-पुथल और निराशा की घड़ियों को अपनी परीक्षा तथा जीवन की ठोकरों को जो अपना सौभाग्य मानता है, क्योंकि वे उत्तरोत्तर ऊर्ध्व धरातल के अनुभव दे जाती हैं। जो कहता है कि मुझे हराओ ताकि मेरी आँखें खुले कि मुझ में कुछ कमी है। राजमहल की अपेक्षा जो झौंपड़ी में अधिक प्रसन्न हो । साधना के क्षेत्र में जिसने भय, घृणा और लज्जा को सदा के लिए तिलाञ्जलि दे दी हो। टहनी पर फल पनपाने के लिए जो कलियों की तरह झड़ जाता हो। कठिनाइयों और सुखों में जो 1. अपने बन्धुओं के बीच ही रहता हो। जो अपने सहयोगियों के दोषों की अपेक्षा उनके गुणों का ही चिन्तन करता है। जो किसी को बुरा न बताए। बुरे की बुराई अपने ऊपर लेकर जो यह दिखाए कि हम सभी एक से हैं। जिसे आवश्यकता है तो अन्य ऐसे पात्रों की आवश्यकता है जो समाज में जीवन जुटा सकें, गौरव जुटा सकें और सम्मान को जन साधारण में बाँट सकें। जिसका कुटुम्ब भी अपने आप में एक अनूठी रचना है। जिसकी एकता में पिता का वात्सल्य, माँ की ममता, गुरु की कृपा, भगिनी का स्नेह, बंधु का बन्धुत्व, पत्नी की परायणता, पुत्र की भक्ति और जीवन के समस्त कर्तव्याधिकारों की अनेक धाराएँ समा गई हैं । इस कौटुम्बीय जीवन से पृथक जिसकी कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं है। वह और कोई नहीं, स्वयं लेखक ही है। यह भिखारी की आत्मकथा लेखक की ही आप-बीती है। 'संघ-शक्ति' के मार्च 1961 से दिसम्बर 1962 तक के अंकों में यह कथा धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुई थी, उसी को पुस्तक रूप में गया है। प्रस्तुत किया

About Author

स्व. तन सिंह

(जन्म 25 जनवरी 1924) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और दो बार लोकसभा के सदस्य थे। उन्होंने युवा राजपूतों के लिए एक संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। वे भारतीय संसद में प्रवेश करने से पहले राजस्थान राज्य की विधान सभा के सदस्य बने रहे।

1944 की दिवाली की रात थी। प्रवेश पिलानी शहर उत्सव की रोशनी में नाच रहा था। स्थानीय राजपूत छात्रावास के अपने कमरे में एक अकेला राजपूत नौजवान अकेला बैठा था, किसी बात के बारे में बहुत गहराई से सोच रहा था। वह सोच रहा था कि 'मेरे राष्ट्र का क्या होगा ’.....? ..... क्या मेरा समाज कोई बदलाव करेगा .....? ..... मुझे दीपक कहाँ से मिलना चाहिए, जिससे ज्ञान मिलेगा मेरा समाज; ..... वह दीपक कौन बनेगा? ..... मैं अपने जीवन का क्या करूंगा? ..... उस युवा की इस पीड़ा ने उसके संकल्प श्री क्षत्रिय युवक को जन्म दिया संघ। वह नौजवान कोई और नहीं बल्कि श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तन सिंह जी थे।

Product Information

Dimension : 21.5*13.5*0.70 cm

Publisher : श्री संघशक्ति प्रकाशन पन्यास 


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