Description
साहित्य के बहु-संख्यक विद्वानों का मत है, कि राजस्थानी साहित्य वीर रस का साहित्य है। विद्वानों के इस मत का न तो हम खण्डन करते हैं और न अनुमोदन ही। मानते हैं, कि राजस्थानी साहित्य में वीर रस की प्रचुरता है. फिर भी उसे केवल वीर रस का ही साहित्य मानना हमारी भूल है। क्योंकि जहाँ हमें इस साहित्य में वीर रस का विशद वर्णन प्राप्त होता है, वहाँ शृंगार, करुण, वात्सल्य इत्यादि अन्य सभी रसों का वर्णन भी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है। करुण रस साहित्य का प्राण माना जाता है। प्राय इसका प्रयोग दुर्लभ है। लेकिन पीछोला साहित्य की तो नींव ही करुण रस के विस्तृत क्षेत्र पर है। वह उस रस का एक अङ्ग है। प्रस्तुत पुस्तिका से करुण रस का रसास्वादन करके हम राजस्थानी साहित्य की सम्पन्नता प्रमाणित करने में समर्थ हो सकते हैं।
अंग्रेजी में पीछोलों को Elegy कहते हैं और उर्दू में मरसिया मृत्यु के उपरान्त मृतात्मा के प्रति उमड़ते हुए करुण उद्गारों के काव्य रूप को ही पीछोला कहते हैं। पीछोले मृत्यु की ओट में गये प्रेमी की मधुर स्मृति पर श्रद्धाव प्रेम के भाव-प्रसून हैं। इसके अन्दर वे आहे हैं जिनके लिये
आह करूँ तो जग जळ, जङ्गळ भी जळ जाय।
पापी हिऊंडो नी जळे, जिण में आह समाय।।
प्रयुक्त हो सकता है। पीछोला की आह जग व जङ्गल जला देने की क्षमता रखती है, फिर मनुष्य की तो बात ही क्या? उस पर तो 'तन मन धुनत शरीर' की उक्ति भली-भाँति लागू हो सकती है। दुखी हृदय को मसोस डालने और सुलगती हुई पीड़ा में बारूद का काम करने की शक्ति पीछोलों में है। इनके अन्दर वह बेचैनी है जिसके लिये एक राजस्थानी हृदय कहता है
जागो तोई जॅप नहीं,सूओं तो सूळीह।
पंडड़ा पर पूळीह (तू) सुळगा गयो साजनिया।।
About Author
स्व. तन सिंह
(जन्म 25 जनवरी 1924) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और दो बार लोकसभा के सदस्य थे। उन्होंने युवा राजपूतों के लिए एक संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। वे भारतीय संसद में प्रवेश करने से पहले राजस्थान राज्य की विधान सभा के सदस्य बने रहे।
1944 की दिवाली की रात थी। प्रवेश पिलानी शहर उत्सव की रोशनी में नाच रहा था। स्थानीय राजपूत छात्रावास के अपने कमरे में एक अकेला राजपूत नौजवान अकेला बैठा था, किसी बात के बारे में बहुत गहराई से सोच रहा था। वह सोच रहा था कि 'मेरे राष्ट्र का क्या होगा ’.....? ..... क्या मेरा समाज कोई बदलाव करेगा .....? ..... मुझे दीपक कहाँ से मिलना चाहिए, जिससे ज्ञान मिलेगा मेरा समाज; ..... वह दीपक कौन बनेगा? ..... मैं अपने जीवन का क्या करूंगा? ..... उस युवा की इस पीड़ा ने उसके संकल्प श्री क्षत्रिय युवक को जन्म दिया संघ। वह नौजवान कोई और नहीं बल्कि श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तन सिंह जी थे।