Description
शतश्लोकी गीता नाम से एक छोटी पुस्तक का प्रकाशन पिछले कुछ समय से अपेक्षित था। यद्यपि श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों में काँट-छाँट करना अनाधिकृत चेष्टा ही है, क्योंकि इसका एक-एक श्लोक माला के मोतियों के सदृश है जिसमें से किसी एक मोती के अभाव में माला अधूरी हो जाती है। तथापि प्रयत्नशील साधक भी इस महत्त्वपूर्ण किन्तु लघुशास्त्र के सात सौ श्लोक आज के युग में समय बहुत अधिक लगने के कारण चाह कर भी अध्ययन के लिये साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। अतएव इस शास्त्र में से सौ श्लोकों को चुनकर एक छोटी गीता का प्रकाशन साधकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है|
पुरुषार्थी साधक गीता के इस अति लघु रूप को कण्ठस्थ करके अथवा भागते-दौड़ते भी इसका पठन-पाठन करके अपने लक्ष्य सिद्धि के लिये मार्गदर्शन पा सकते हैं। इसी भाव से इसके प्रकाशन का दुस्साहस किया गया है। भगवत प्रेमी एवं गीता प्रेमी साधकों की भावनाओं को हमारा यह साहस यदि कोई चोट पहुँचाता है तो हम क्षमाप्रार्थी हैं। लघु प्रयत्नशील साधकों की आवश्यकताओं ध्यान में रखकर यह आवश्यक था अतएव प्रस्तुत है यह लघु प्रयत्न।
इस पुस्तक का आधार गीता प्रेस गोरखपुर की स्वामी रामसुखदास जी महाराज की साधक संजीवनी अन्वयार्थ टीका ही है। संस्कृत में श्लोकों को वाचन के दृष्टिकोण से संधि विच्छेद करके भी लिखा गया है जिससे अर्थ सहित समझ कर ही वाचन किया जा सके। व्याकरण के दृष्टिकोण से यह त्रुटिपूर्ण हो सकता है. किन्तु नये साधकों के लिये ऐसा करना सहायक होगा ऐसा हमारा मत है। शब्दों का अर्थ करते समय श्लोक के शब्दों के क्रम के अनुसार ही अर्थ दिया गया है। तत्पश्चात् सरलार्थ भी दिया गया है जिससे प्रत्येक शब्द का उच्चारण अर्थ समझकर किया जा सके।
About Author
स्व. तन सिंह
(जन्म 25 जनवरी 1924) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और दो बार लोकसभा के सदस्य थे। उन्होंने युवा राजपूतों के लिए एक संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। वे भारतीय संसद में प्रवेश करने से पहले राजस्थान राज्य की विधान सभा के सदस्य बने रहे। 1944 की दिवाली की रात थी। प्रवेश पिलानी शहर उत्सव की रोशनी में नाच रहा था। स्थानीय राजपूत छात्रावास के अपने कमरे में एक अकेला राजपूत नौजवान अकेला बैठा था, किसी बात के बारे में बहुत गहराई से सोच रहा था। वह सोच रहा था कि 'मेरे राष्ट्र का क्या होगा ’.....? ..... क्या मेरा समाज कोई बदलाव करेगा .....? ..... मुझे दीपक कहाँ से मिलना चाहिए, जिससे ज्ञान मिलेगा मेरा समाज; ..... वह दीपक कौन बनेगा? ..... मैं अपने जीवन का क्या करूंगा? ..... उस युवा की इस पीड़ा ने उसके संकल्प श्री क्षत्रिय युवक को जन्म दिया संघ। वह नौजवान कोई और नहीं बल्कि श्री
(जन्म 25 जनवरी 1924) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और दो बार लोकसभा के सदस्य थे। उन्होंने युवा राजपूतों के लिए एक संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। वे भारतीय संसद में प्रवेश करने से पहले राजस्थान राज्य की विधान सभा के सदस्य बने रहे।
1944 की दिवाली की रात थी। प्रवेश पिलानी शहर उत्सव की रोशनी में नाच रहा था। स्थानीय राजपूत छात्रावास के अपने कमरे में एक अकेला राजपूत नौजवान अकेला बैठा था, किसी बात के बारे में बहुत गहराई से सोच रहा था। वह सोच रहा था कि 'मेरे राष्ट्र का क्या होगा ’.....? ..... क्या मेरा समाज कोई बदलाव करेगा .....? ..... मुझे दीपक कहाँ से मिलना चाहिए, जिससे ज्ञान मिलेगा मेरा समाज; ..... वह दीपक कौन बनेगा? ..... मैं अपने जीवन का क्या करूंगा? ..... उस युवा की इस पीड़ा ने उसके संकल्प श्री क्षत्रिय युवक को जन्म दिया संघ। वह नौजवान कोई और नहीं बल्कि श्री
(जन्म 25 जनवरी 1924) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और दो बार लोकसभा के सदस्य थे। उन्होंने युवा राजपूतों के लिए एक संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। वे भारतीय संसद में प्रवेश करने से पहले राजस्थान राज्य की विधान सभा के सदस्य बने रहे।
1944 की दिवाली की रात थी। प्रवेश पिलानी शहर उत्सव की रोशनी में नाच रहा था। स्थानीय राजपूत छात्रावास के अपने कमरे में एक अकेला राजपूत नौजवान अकेला बैठा था, किसी बात के बारे में बहुत गहराई से सोच रहा था। वह सोच रहा था कि 'मेरे राष्ट्र का क्या होगा ’.....? ..... क्या मेरा समाज कोई बदलाव करेगा .....? ..... मुझे दीपक कहाँ से मिलना चाहिए, जिससे ज्ञान मिलेगा मेरा समाज; ..... वह दीपक कौन बनेगा? ..... मैं अपने जीवन का क्या करूंगा? ..... उस युवा की इस पीड़ा ने उसके संकल्प श्री क्षत्रिय युवक को जन्म दिया संघ। वह नौजवान कोई और नहीं बल्कि श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तन सिंह जी थे।