Description
श्री तनसिंह जी प्रणीत विवेच्य कृति "होनहार के खेल" उनके पाँच हिन्दी निबन्धों की एक पुस्तक है। यह वस्तुतः पाँच स्वतंत्र निबन्ध हैं जो राजस्थान के महिमामय उज्ज्वल अतीत और निर्माणाधीन वर्तमान का लेखाजोखा करते हैं। इस पुस्तक का पहला निबंध "वैरागी चित्तौड़" है जो अपनी अतीत कथा के व्याज से वहाँ हुए साके और जौहर की ज्वाला में आहुत हुए अपने हजारों पुत्रों, पुत्रियों की कहानी सुनाता है। वह कभी गर्व करता है, कभी पश्चाताप करता है और कभी अपनी खिन्नता प्रकट करता है तथा बलिदान और त्याग का स्मरण करता है। यह निबन्ध अतीतकालीन राजपूत जाति के चरित्र और मेवाड़ के बलिदान से अबोध वर्तमान को ललकार है।
About Author
स्व. तन सिंह
(जन्म 25 जनवरी 1924) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और दो बार लोकसभा के सदस्य थे। उन्होंने युवा राजपूतों के लिए एक संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। वे भारतीय संसद में प्रवेश करने से पहले राजस्थान राज्य की विधान सभा के सदस्य बने रहे।
1944 की दिवाली की रात थी। प्रवेश पिलानी शहर उत्सव की रोशनी में नाच रहा था। स्थानीय राजपूत छात्रावास के अपने कमरे में एक अकेला राजपूत नौजवान अकेला बैठा था, किसी बात के बारे में बहुत गहराई से सोच रहा था। वह सोच रहा था कि 'मेरे राष्ट्र का क्या होगा ’.....? ..... क्या मेरा समाज कोई बदलाव करेगा .....? ..... मुझे दीपक कहाँ से मिलना चाहिए, जिससे ज्ञान मिलेगा मेरा समाज; ..... वह दीपक कौन बनेगा? ..... मैं अपने जीवन का क्या करूंगा? ..... उस युवा की इस पीड़ा ने उसके संकल्प श्री क्षत्रिय युवक को जन्म दिया संघ। वह नौजवान कोई और नहीं बल्कि श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तन सिंह जी थे।