समाज मे संस्कार निर्माण का कार्य अत्यन्त गुरुतर कार्य है। यह अत्यन्त कष्ट साध्य भी है। क्यूँकि हमारी वर्तमान अवस्था से उबरने का यही एक मात्र मार्ग है, इसलिए कितना भी कठिन हो, करने योग्य कर्म यही शेष रहता है।
लापरवाह के संस्मरण लेखक के अपने अनुभव है तो कुछ इस तपोयात्रा के अनुगामीयो के चित्रण है।
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स्व. तन सिंह (जन्म 25 जनवरी 1924) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और दो बार लोकसभा के सदस्य थे। उन्होंने युवा राजपूतों के लिए एक संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। वे भारतीय संसद में प्रवेश करने से पहले राजस्थान राज्य की विधान सभा के सदस्य बने रहे।
1944 की दिवाली की रात थी। प्रवेश पिलानी शहर उत्सव की रोशनी में नाच रहा था। स्थानीय राजपूत छात्रावास के अपने कमरे में एक अकेला राजपूत नौजवान अकेला बैठा था, किसी बात के बारे में बहुत गहराई से सोच रहा था। वह सोच रहा था कि 'मेरे राष्ट्र का क्या होगा ’.....? ..... क्या मेरा समाज कोई बदलाव करेगा .....? ..... मुझे दीपक कहाँ से मिलना चाहिए, जिससे ज्ञान मिलेगा मेरा समाज; ..... वह दीपक कौन बनेगा? ..... मैं अपने जीवन का क्या करूंगा? ..... उस युवा की इस पीड़ा ने उसके संकल्प श्री क्षत्रिय युवक को जन्म दिया संघ। वह नौजवान कोई और नहीं बल्कि श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तन सिंह जी थे।
Product Information
Dimension 8.5x5.5x 0.2 cm
Publisher : श्री क्षत्रिय युवक संघ ग्रन्थ माला का पुष्प