निर्देशिका भाग-1

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श्री क्षत्रिय युवक संघ एक साधना का मार्ग है, जहाँ जीवन को साधवर्तियो की और उन्मुख किया जाता है। जीवन को संयमित व अनुशासित किया जाता है। ऐसा जीवन ही समाज चरित्र की शिक्षा का मध्यम बनता है। संघ के प्रत्येक कार्यकर्म के उपयुक्त नियम बनाकर उन नियमानुसार कार्य सम्पन्न किया जाता है। ऐसे सामान्य नियमो को छपवाकर इस पुस्तक की आधार भूमि का निर्माण हुआ 


About Author 


स्व. तन सिंह (जन्म 25 जनवरी 1924) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और दो बार लोकसभा के सदस्य थे। उन्होंने युवा राजपूतों के लिए एक संगठन श्री क्षत्रिय युवक संघ की स्थापना की। वे भारतीय संसद में प्रवेश करने से पहले राजस्थान राज्य की विधान सभा के सदस्य बने रहे।

1944 की दिवाली की रात थी। प्रवेश पिलानी शहर उत्सव की रोशनी में नाच रहा था। स्थानीय राजपूत छात्रावास के अपने कमरे में एक अकेला राजपूत नौजवान अकेला बैठा था, किसी बात के बारे में बहुत गहराई से सोच रहा था। वह सोच रहा था कि 'मेरे राष्ट्र का क्या होगा ’.....? ..... क्या मेरा समाज कोई बदलाव करेगा .....? ..... मुझे दीपक कहाँ से मिलना चाहिए, जिससे ज्ञान मिलेगा मेरा समाज; ..... वह दीपक कौन बनेगा? ..... मैं अपने जीवन का क्या करूंगा? ..... उस युवा की इस पीड़ा ने उसके संकल्प श्री क्षत्रिय युवक को जन्म दिया संघ। वह नौजवान कोई और नहीं बल्कि श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तन सिंह जी थे।

Product Information

6.5x4 x 0.2 cm

Publisher : श्री क्षत्रिय युवक संघ ग्रन्थ माला का पुष्प

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